Tuesday, September 23, 2014

ज़िंदगी तु ही बता कि तु मेरी क्या लगती है।

अब तो अपनी तबियत भी कुछ
जुदा सी लगती है;
सांस लेता हूँ
तो ज़ख्मों को हवा सी लगती है;
कभी राज़ी तो कभी मुझसे
खफा सी लगती है;
ज़िंदगी तु ही बता कि त
मेरी क्या लगती है।

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