Friday, December 27, 2013

चाहत में बहुत कुछ

ज़रा पाने की चाहत में बहुत कुछ छूट जाता है
ना जाने सब्र का धागा कहाँ पर टूट जाता है

किसे हमराह कहते हो यहाँ पर अपना साया भी
कहीं पर साथ चलता है कहीं पर छूट जाता है


गनीमत है नगर वालों लुटेरों से लुटे हो तुम
हमें तो गाँव में अक्सर दरोगा लूट जाता है

अजब शै है ये रिश्ते भी, बहुत मजबूत लगते हैं
ज़रा सी भूल से लेकिन भरोसा टूट जाता हैं

PIYA

जाते हुए उसने सिफे इतना कहा था मुझसे ओ
पागल .........
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अपनी जिँदगी जी लेना.......
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वैसे प्यार अच्छा करते हो...

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